पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/२५५

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मारतकै पार्चन राजघरा संवत् ११२७ (विक्रमसंवत् १२६२) में लक्ष्मण-सैन महामलिम, बहुदास पुत्र, लीघरदास, ने सदुाने कणमित नामक मन्य स* मह किया था । उसमें इन दोनोई चिंत पद्य गं दिये गये हैं। इस अन्यमें माके कोई ४००६ से अधिः कवि क सद्भह क्रिये गये हैं । अतएव यह ग्रन्थ इन कवियोंके समयका निर्णय करने के लिए दहुत उपयोगी है। इस ग्रन्थ का पिता बरुदार लक्ष्मणसे नका प्रतिपात्र र सल्लाहकार सामन्त यो ।। | पल्लालसेन इनका आक्षयदाता ही नहीं, स्वयं भी विद्वान था। शैक-सवतु १८९१ ( विक्रम-संवत् १३२६ } में उसने दान-सागर नामक पुस्तक माह की ठार इसके एक वर्ष पहले, शकसंवत् १९॥ (वि० स० १२५) में अद्भुतप्तगर नामक ग्रन्थ बनाना में किया । पग्न्तु इसे समाप्त न कर सफा । बालसेन मुयु विषयमें इस अन्धमें लिखा है| शक-संदतु १०९० ( विन्म-संवत् १२२५) में चालसेनने इह मन्था प्रारम्भ किया और इसके साप्त होने के पहले ही उसने अपने पुत्र प्रसेन राज्य सांद दिया। साथ ही इस पुस्तक समाप्त फरनं आशा भी दें युः । इतना काम कर गङ्गा और यमुनाके सद्ममें प्रर्य करके अपनी नीति उसने प्राणयाग किया। इस घटनाकै दाद मणपेनने अंतसागर समाप्त करवाया ।। | परोन गट्टा-प्रवेशगई धम्ना- शयत् ११००, (कमसंवत् १२०५ या ईस सन १३७८ के इपर उपर होनी चाट्रि; क्योंकि दमनका महामण्डलम् धराप्त, अपने अनुगमत अन्य समाप्त गमय -संपत् ११२७ (३० स० ११६१=fराथी (2)J D: A Stro, 1901, 75