पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/२६३

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मारवफे प्राचीन राजवंश छाव्यमालामें इपी हुई आय-सप्तशती के पहले पृष्ठके नोट न १३ एक झोक है-- वनश्च शुदो ज्ञदेव उमापति.।। हरिराज रन्नःनि सनि लेइफस्य ६ ॥ इसमें मी प्रतीत होता है कि उमापां लक्ष्मण गामें विद्यमान या । परन्तु लक्ष्मणसेन दाइको विज्ञयाने एक शिवमन्दिर बनवाया था । जसकी प्रशस्तिक त यहीं उपतचर या । इससे जाना जाता है कि यह झवजयसेन राज्पसे लेकर चल्लालसेनमारपई त जीवन रहा होगा । तम्या, दमणसेन जन्मते ही राज्यसँहासन पर बिठाया गया था, इस जनश्रुतिके आधार पर ही इस कविका उसके राज्य–समयमें भी विद्यमान होना लिंस दिया गया है तो आश्चर्य नहीं । इस कविका कोई मन्च में समय नहीं मिला। केवल इसके रचे हुए छ कि वेष्यतेगी और पद्मावलि आदि मिलते हैं। । र ।। इसका नाम भी गीत[वन्दकै पूर्जेदात में मिढ़ा है। कहते हैं, यह भी दामपणमैनी समाका कृत्रि या । सम्मई. बल्लाळनान्तरित्र (महालचरित) को क रणदत्त और वह धरण एक ही होगी। यह महालन समय” मी हा हो तो आश्चर्य नहीं है। गोवर्धन । आचार्य गोवर्धन, नीलाम्बरा पुत्र, मगनका समान था । इने ७०, माय-न्दा यसप्तशति नामक अन्य घना पा । मन उसमें सेनवंश नि प्रशस्वी की है। परन्तु उता.नाम नहीं दिया। उसमें इसने अपने पिता नमि नोटाध्या हिंसा है। | इस ग्रन्पी टीका टिसा है कि मैंनतमुपति' में काव्य के रचयिता मरना तापये है। परन्तु इ इ नुहा है। इाक-61 ८