पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/२६४

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सेन-वंश । १७०२ विक्रम-संयत् १८३७ में अनन्त पाण्उतने यह की बनाई थी। उस समय, शायद, बहू सेनवंशी राजाओंके इतिहाससे अनभिज्ञ रहा होगा। नहीं तो गोवर्धनके आश्रयदाती चल्लालसेनके स्थान पर बहू बयर-- मेनका नाम कम न लिखता । | चयय । यद् गीतगोविंन्द्वका कर्ता था । इसके पिता का नाम भीजवेब और | माताका बाम ( रामा) देषीं था 1 इराकी स्वीमा नाम पद्मावती था। यह नाकै केन्नुनिल ( केंन्दुली ) नामक गोंयका रहनेवाला था । वह गाँव उस समय वीरभूमि जिले में था। | इस कविकी कविता बहुत ही गंभुर होती थी। स्वयं विने अपने मुँह से अपनी कविता प्रशंसा में लिखा है यत साधु मधुर विसुधा बिधालयपि दुरापम् । अर्थात हे पण्डित । स्वर्गमं भी दुर्लभ, ऐसी अj और भ3 में कविता सुन। इसका यह कयन वास्तवमें ठीक है। हृलायुध ! | यह पत्र के पनजय नामक ब्राह्मणका पुन था । दलसेनके समय क्रम से राजपण्डित, मन्त्री और धर्माधिकारीके पदों पर यह रहा या इसके घमाये हुए ये मैन्य मिलते हैं। झालणसर्वस्व, पण्डितमर्वस्व, मीमरसर्वस्व, चैतसर्वस्व, शैव सर्वस्त, द्विजानन मादि । इन राय आणण्र्वस्व मुरःय है । इसके दो भाई और थे । उनसे बड़े भाई पशुपतिनै पशुपति-पद्धति नामा आवश्यक ग्रन्थ बनाया और दूसरे भाई ईशानने आम्पिति नामक पुस्तक भी। | श्रीधरदासू ।। अरू उमगरौन, प्रीतिपात्र सामन्त चट्दासका पुत्र था। यह स्वयं भी लड़मणसेनको । माण्डिलिंक थी। इसने मुंवत् ११२७१ असण