पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/२६६

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सेनवंश। होना लिसा है ।पर मघवन और कैशवसेनके नाम नहीं लिखें । सम्भव हैं, माघयसेन और केशवसैन, अपने पिता के समय ही भिन्न मिंन्न | प्रदेश सह नियत कर दिये गये हैं। इससे अबुलफज़लने उनका | राज्य करमा लिंप दिया है। और यदि बास्में इन्होंने राज्य किया भी होगा तो बहुत ही अल्प समय तक। पूनाक ताम्रपत्रमें विभ्वरूपसेन होमणसेनका उत्तराधिकारी, प्रताप राजा और यवनका जीतनेवाला, लिखा है 1 उसमें उसकी निम्नहिावेत उपाधिय दी हुई हैं पHि, गजपति, नरपति, राजश्वगाधिपति, परमेश्वर, परमभकास, महाराजाधिराज, अरिराज-वृषभानुशङ्कर और ईश्वर । | इससे प्रकट होता है कि यह यतन्त्र और प्रतापी राजा या 1 सम्म है, मगरौनके पीछे उसके बचे हुए राज्यका स्वामी यही हुआ हौं । तुचक्काने ना6िमें लिखा है| "जिस समय ससैन्य चरितार सिलजी फामरूद (कामरूप ) और तिरहुतकी तरफ गया उस समय उसने मुहम्मद शेरां और उसके भाईको फौग देकर लगनार (राद्ध ) और जानर ( उत्तरी उत्कल ) की तरफ मेजा । परन्तु उसके जीतेजी लपनौतीका सारा इलाका उसके अधीन न हुआ।। अतएव, सम्मय है, इश चुदाईने मुहम्मद शेरो कार गया हो, क्य६ विश्वमसेन साम्रपमें उसे पवनका विजेता हिंसा है । छायब उस लेख का तात्पर्य ही विजयसे है। यदि यह बात ठीक हो ते लक्ष्मणसेन बाद मङ्गदेशका राजा ही हुआ होगी और मापदसेन या केशवसेन विरमपुरके राजा न होगे, कृन्तु कैंपल भिन्न भिन्न प्रदेशके हैं। शासक रहे होंगे। थपाप अगुठफजूलने विश्वसेनका नाम न लिया तथापि उसका १४ वर्षसे अधिक राज्य करना पाया जाता है। २२१