पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/२७६

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चौद्यान चंश ! ४-जयराज़ (जयपाल)। यह् सामन्तवा, पुत्र था और उसके बाद राज्यझा स्वामी जुआ। अणहिवाहा (पाटण) के पुस्तक-गंडारसे मिली हुई ‘न्वतुविशति-प्रबन्ध ! नामफ हस्तलिस्मत पुस्तकमें इसका नाम अजयराज लिखा है । इसकी उपाधि ' चक्री' थी । यह यद् वृद्धावस्थामें थानपस्य हो गया था और उसने अपना आश्चम अजमेरके पास पर्वतकी तराईमें बनाया था। यह स्थान अबतक इसीके नामसे प्रसिद्ध है। प्रतिचई मापद हुका ६ कै दिन इरर स्थानपर मेला लगता है और उस दिन अनमंर-नगरवासी अपने नगरके प्रथम ही प्रथन वसाने वाले इस अजयसाल याबाकी पूजा करते हैं। | यह विक्रम संवत्की छठी शताब्दीके अन्तमें ची सातवीं शतके आरम्मम विद्यमान था । । ५-विग्रहराज ( प्रथम )। यह जयराजका पुत्र और उत्तराधिकारी था । ६-चन्नुज । प्रथम }} यह विग्रहराजका पुत्र था और उसके पीछे राज्यका स्वामी हुआ । 1s-गोपेन्द्रराज । यह चन्द्रराजा भाई और उत्तरार्ध म्या । लेचिंत चतुविंशति-अन्घमें इसी नाम गोविन्दराज लंपा है। इस वंशका सबसे प्रथम राजा यह थी; जिसने मुसलमानों से सुद्ध कर सुलतान पेग चरिखको पकड़ लिया था 1 परन्तु इतिहासमें इस मामकी झोई सुलतान नहीं निता है । अतः सम्भव है कि यह कोई नयति होगा । क्योंकि इसके पूर्व ही गुमानॉन सिन्घके कुछ भारी