पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/२८८

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चौहान-बैंश । गहुत क्रोध चट्ट आया और चौहान राजा आनाकसे वयं भिड़ जाने लिये उसने अपने महाबतको आज्ञा दी कि मेरे हायक अनाक हाथीफ निकट ले चल । इस प्रकार जय कुमारपालका हाथ निकट पहुँचा तब उसे मारनेके लिये आई स्वयं अपने हायी पर से उसके हाथी पर कूदनेके लिये उछला । परन्तु महावत हाथीको मछकी तरफ हटा लेने के कारण धीचहीमें पृथ्वी पर गिर पड़ा और तत्काल यहीं पर मारा गया । अन्तर्भ आनाक भी कुमारपालके वापसे घायल गया | और विजय कुमारपालने उसके हाथी घोड़े न दिये ।। | जिनमण्टनरहित कुमार पाल-प्रवन्धमें ब्रिा :-- शाकम्भरीवा | अणराज अपनी ख्री देवदेवीके साथ चौपड़ खेलते समय उसका इपहास किया करता था। इसमें कुछ कर एक दिन उसने इसे अपने भाई फुमारपालका मय दिखलाया । इस पर अणराजने इसे लात मार र धाँत निकाः दिया। तब देवडव अपने भाई कुमारपाङ्गके पास वर्क गई और उसने उससे राई हाल कह सुनाया। इस पर कोत हो। कुमारपालन इसपर चढ़ाई की । उस समय अणराजने आरभद्ध (यह व आहड़ या जो कुमार पाठको छोड़ कर इसके पास आ रहा था ) द्वारा रिशयत दे कुमारियालके सामन्तोसे अपनी तरफ मिला टिया। परन् यसमें कुमारपाल घतासे अपने हाथी से अराजके हाथी | पर कूद पड़ा और उसे नीचे गिराकर उसकी छाती पर चढ़ बैठा। बदमें उसे तीन दिन तक पर बिठला ६८६ ।। के पिंजरे में बंद रहकर पा राय हेमचन्द्रने अपने मात्रय काव्यमें लिहा : 4 कुमारपाकै ज्या चाई ६ । यही खवर सून सुमारपाल भी अपने सम्मकै साथ इस पेने पर के रज ५१ र पर चढ़ दें। मामें भाइके इस चद्रातका और राजा विक्ग २८१