पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/२९१

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भारतके प्रार्चन राजश द्विीपर विनय प्रति की । इससे अनुमान होता है कि इसके और नाम्वाली शाखाके चौहान के च कृत वैमनस्य हो गया था। उक्त घट्ना अशराज ( आरज) या उसने पुन आल्के समर्प हुई होगी, क्यों कि इन्होंने गुनाशके राजा कुमारपार की नई स्वीकार कर ली ये । | देहही प्रसिद्ध फन्निशाही छाटप वि स म १२२१ (१८ स० ११६३} बेझारशुक्ल १५ फा इस लेख पृ है । इसम ले है ॐि-- | ** इसने यानाके प्रससे विन्ध्याचल में लिया है । विजयकर उनमें कर वसूल किंया र आर्यावर्त में मुसलमानको मग कर एक यर कर मारतको आर्यभूमि बना ६८ । इसने मुसलमानका सरक पर निकाल देने अपने उत्तराधिकारियों को बीयराकी ची।" मेह ठेस पुइर फीरानशाहकोटाटपर अशक धर्मादाभाई नीचे गुर हुआ है। हम उसके कि यहीं न केर देते ग्यादङ्किमाईविरतिविमरर्थयात्राप्तसहादुई प्रगृति विनमन्स पु इन्न । यात्र यमःचे पुन तुवाद्धविना१५ ग्रा.पन्द्रो मत विनय धारा से पिट ।। नृते सुनते गाग:इ. Tथर्ग' नान् विराज र चिंता सताननः मन् । ३६.५ र म्यधाये ३माया र भर करणायम नसामुन्न्यं भने । ६. दरमा ३१मा भनबन' ११एईक्रिएभिएण' ना। पाठटा सम्मान गरेर में इमने भ में पाई" भनाई ६ ॥

  • ३३ घन्थे। 'केने ना? ३, ने भापति समेत