पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/३

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ईसा की चौथी शाताव्दी के प्रारम्भ में चीनी यात्री फाहियान भारत में आया था। इसकी यात्रा का प्रधान उद्देश्य केवल बौद्ध धर्म की पुस्तको का संग्रह और अध्ययन करना था। इसके यात्रा वर्णन से उस समय की अनेक यात्राओं का पता लगता हे। परन्तु इसके इतने बड़े इस सफरनामे में उस समय कें प्रतापी राजा चन्द्रगुप्त द्वितीय का नाम तक नहीं दिया गया है। इससे भी हमारे उप्युर्क्त लेख (प्राधीन काल से ही भारतवासी मनुष्य-चरित लिखने की तरफ कम घ्यान देते थे) की ही पुष्टि होती है।

इस प्रकार उपेक्षा की दृष्टि से देखे जाने के कारण जो कुछ भी ऐतिहासिक सामग्री यहा पर विधमान थी, वह भी कालान्तर में लुतभाव होती गई और होते होते दशा यहाँ तक पहुँची की लोग चारणों और भाटों की दृन्तकथाओं को ही इतिहास समझने लगे।

आज से १५० वर्ष पूर्व प्रसिध्द परमार राजा भोज के विषय में लोगों की बहुत ही कम ज्ञान रह गया था। वृन्त कथाओं के आधार पर वे प्रत्येक प्रसिद्ध विद्वान को भोज की सभा के नव रतनों में समझ लेते थे। और तो क्या स्वयं भोज प्रब्रन्धकार बल्लाल को भी अपने चरितनायक का सच्चा हाल मालूम ना था। इसी से उसने भोज के वास्तविक पिता सिन्धुराज को उसका चचा और चचा मुंज को उसका पिता लिख दिया है। तथा मुंज का भोज को मरवाने का उद्योग करना और भोज का "मग्न्धाता स मदीपतिः" आदि लिखकर भेजना बिलकुल बे-सिर-पैर का किस्सा रच डाला है। पाठकों को