पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/३०२

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चौहान-वंश । बंदी हो आनेका अत्यधिक सैद हुशा और इसने स्वामीको इस | अवस्थामें छोडू जाना अपने गौड़ बैशके लिये कुछङ्करूप समझा, इसलिये नगर (दिल्ली) को घेरकर यह पूरे एक मास तक लट्टता रहा। एक दिन भिसने बादशाह से निवेदन किया के गृथ्वीराजने आपको गुन्हमें बन्दी बनाकर अनेक बार छोड़ दिया था । अतः आपको भी चाहिए कि कमसे कम एक बार तो उसे भी छोड़ दें । इस पर बादशाह बहुत कुछ हुया और उसने कहा कि यदि तुम्हारे जैसे मन्त्री हों तो रज्येि ही नष्ट हो जाय । अन्तमें सुलतानने पृथ्वीराजको कलमें भेज दिया। वहीं पर उसका वैहान्त हुआ । जब पड़ समर उद्यराज मिली तब उराने में युद्धमें उरकर वीरगति प्राप्त की, तया पृथ्वीराज छोटे भाई हरिराजने अपने बड़े भाईंकन क्रिया-कर्म किया ।" | जामिल हिकायतमें लिया है। | ** म मुहम्मदप्तम ( शहाबद्दन गो ) दुसरी यार बोला ( पृथ्वीराज़ ) से लड़ने चला तब उसे सचर विली कि चुने हाथियोको अलग एक पंक्तिमें पड़े किये हैं। इससे युद्द समय घोड़े चमक जायेंगे । यह इनर सुन उसने अपने सैनिको आज्ञा दी कि जिस समय हमारी सेना पृष्टवीराजकी सेना के पास पड़ाव पर पहुँचे उस समय से प्रत्येक मेके सामने रातभर खूब अग जड़ाई जाय ताकि शत्रुफ हमारी गतेदेविका पता न लगे और ये समझें कि गारा पड़ाय उस स्थान पर है। इस प्रघर अपनी सेनाकै एक भागको समझाकर वह अपने सेनाकै दुसरे मग सहुत दूसरी तरफ चल पड़ा । परन्तु उधर हे सनाने दर में आग जलती देश समझ लिया %ि बादशाहा पाव वहीं है और उधर रामर पलकर मादशाह पृथ्वीराज सेना पिछले भाग पास आ पहुँचा तधा प्रातःकाल होते ही इस सेनाने हुमटाकर पृथ्वीरानी सेना इ मानो फष्टनी शुरू किया। जब वह ३१५