पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/३०७

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भारतके माधीन राजवंशसमयमें दिखीके हन्तु राज्य समाप्त होकर उसपर मुसलमानों अधिकार हो गया ।। इसके तवे के सिक्के मिलते हैं जिनकी एक तरफ सुयकी मूर्ति और * श्रीवारनदेव' लिख रहा है तथा इसरी तरफ वैलरकी तसवीर और * आसावरी समतदेव' ' हिंसा होता है । यह सामन्तदेव राय चौहानोंका विज्ञान होगा । कुछ नि पैसे भी हैं जिनपर एक तरपा पूराना नाम और दूसरी तरफ सुलतान मुहम्मद मी नाम है । पति गौचकर ओझाका जानुमान है कि ये सिके पीरजके कैद होने और मारे जानेके बीच मय है । इस बातकी पुष्टि ताजुलम सिका प्रमाण इत किया जा सकेता है। इसमें लिखा है कि-" अजमेरका राना, ॐ ॐ सजा गचक्र रिहाई हासिल कर चुका था मुसलमानों नफरत रखता था । जब उसके साजिश करनेको हाल बादशाहको मालूम हुआ । उसकी आज्ञासे राजाका सिर काळ दिया गया। इस से प्रकट होता है कि पृथ्वीराज कैद होने के बाद भी कुछ दिन नीत रहा था। सम्मा है कि ये निकै उ समय हो । इस समय ५ शिलालेख मिळे है-हला वि० स० १२३६ ( ई० स० ११७५) आपाइ कृा १२ का । यह मैशर्छ ( जहाजपुर जिलें ) के लौहारी गाँव से मिला है। दूसरा और तसग मदनपुर १ बुदेलवड ) से मिली है । इनका एक वि० स० १२३५ (३० स० ११८२ ) का है । चौथा व० स० १२४४ ( ६० स० ११८७ ) के अषण मासका है । यह बीसलपुरसे मिला है। और पाँचवाँ वि० स. १९५५ ( ई० स० १ १८८) की फाल्गुन शुक्ला १२ फा हैं । यह मैव ( जहाजपुर ) के आलदा गवसे मिला है। (१) अ पृतरा पइते लिखा या नुक्का ६ ।