पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/३१२

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मातर्फ माचीन रशियेशकारण इसने अपने द्रौढ़े भाई वाग्गेटो घुरफर झा ( मरिनारायण देसभालकी भार में तुम्हें पता हैं । इसपर फुमारकी दुष्ट प्रकृतिक विचारकर बाग्मटने उत्तर दिया के होनहार ईश्वर अर्धन है। परन्छ मैने जिस प्रकार आप में की है इस प्रकार उसकी भी गा । ४-धीरनारायण ।। यह प्रल्हादयकी पुत्र और उत्तराधिकारी पी । हर महाकान्पमें लिया है: “यह आम्रपुरी ( मैर) के कछवाहा इजा पुनसे जिगह करने गया । परन्तु सुलतान जलालुद्दीन हमला के कारण इसे मार कृ ष्णभोर ना पड़ा। पद्यांचे संतानने भी इसका पीछा किमा भर देणय मोरको घेर लिया, तथापि अन्तमें इसे निराश होकर ही टना पड़ा। जब सुलतानने इ# तरह अपना काम बनते न वैसा तव कपटशाल रचा और दूतद्वारा कहलवाया कि 'मैं तुम्हारी चरितासे बहुत प्रसन्न हो र हुमसे मित्रता फरना चाहती हैं। तया ईयर साध रखकर पतिशा करता है कि में इसमें किसी प्रकारको गडपड नहीं है । ' इन बातोंपर विश्वासकर चरनारायण सुलतान पास जानेको उद्यत हुआ । इस पर वाग्भटने उसे बहुत समझाया कि गनुको विश्वास करना कि प्रकार भी इचित नहीं है, परन्तु इग्ने एक न मानी । इसपर दुरिवंत हो वाग्मट वहाँसे निकल गया और मालसंमें जा रहा । वीरनारायण भई अथासमय व पचा। पहले वो बादशाहने इसका चहुत सुन्मान किया, परन्तु अवमें विष दिली मेवा होला और प्राथमौरपर अपना अधिकार कर लिया। इस कामसे निश्चिन्त से इसने मापे राजाको वान्गको मार डालने के लिये झी किया । नन पडू मृत्तीत वाग्मट मिला तब उसने पहढे ही मायापतिको मारकर उकै रामपर अधिकार कर लिया। ខ្ញុំ