पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/३१६

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भारतके प्राचीन राजवैश३० सं० ११३७ में इसने मुरड़मानसि उधमेरका झिला छीना और हि० स० ६५१ ( ई० सं० १३१०-३० स० १२५३) में वह दूसरी बार उलगखांसे लट्टा । इससे इसका १७ वर्ष राज्य कान सिद्ध होता है और सम्मद है %ि इसके बाद मैं कुछ समय तक यह जीवंत हो । हम पहले लिख चुके हैं कि इस समय नरवरपर प्रतापी राजा चाहईदेवका अधिकार या । यह राजा इट्टा वर या और इसके पास भी बहुत बड़ी सेना थी । इसने उलगखां मौ हराया था। तबकाते If8 की पुस्तकांचे लेख-दोपसे ई स्थानोंपर इस नामकी जगह 'बार' नाम भी पा जाता है । इसके आधारपर एडवई मस साहबने उपर्युक्त चाहूढ़ ( घामट ) देवा और नरवर यायका एक ही होना अनु मान कर लिया है और जनरल कनिंगहामने मी इसमें अपनी अनुमति जतलाई है । परन्तु नरवर में उक्त चाहदेवा नाम स्पष्ट लिखा मिटनेसे उक्त अनुमान ठीक प्रतीत नहीं होता 1 नवरके थाहदेव पुत्र आपलदेव था जो उसको उचराचिंकारी हुया और इस (रपयंघोरके) बाहह ( बम्मिट) को पुन और उत्तराधिकारी नेत्रसिंह था । ६-जैवसिंह। यह् वाग्भट ( बाहह )देवको पुन र उनराधिकारी या । इसकी रानीका नाम हीरादेवी था । इससे हम्मरका जन्म हुआ था । मी महाकाव्यमें झिसा है कि यह वि० १० ११३९ (६० स० १३८२ के माघ शुक्लपक्षमें अपने पुत्र हम्मीरकी राज्य दे नवम भानपत्य हो गया। | इसने रगममोरमें अपने नाम नैत्रागर' नामका एक तरी इनवाया था। इसके दुराण और करम नामके दो इंच और भी थे। '३६८