पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/३२०

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भारतकें प्राचीन जयंदादोनों अपनी अपनी होना शहिं पयन-मैनामें जा मिले 1 इसके यात्रु जब हुम्मारने अपने गोले वाडके गोदामा निरक्षण किया नत्र जस काझी देंस सम परसे उसका विश्वास उड़ गया । अतः उसने अपनी रिपार्ने रहनेले यश्न सेनापति महेमसाहसे झी "# मियाँझा तो सुद्ध प्रा दैना ही धर्म है, परन्तु मेरी सुम्मतिमें तुम्हारे समान विदेदियों नाहक संकट में पडना उचित नहीं ! इस लिये तुमको चाहिये केि केस सुरभित स्पनिमें चले जा । यह सुन महिमसाहीं अपने घर की दर या। हुजी और वहाँ पहुँच र उसने अपने सर्व कुटुम्वा वच छ डाला । इसके चाद लौटकर उसने हम्मीरसे निवेदन किय} कि मै हेर्न की दूसरे स्थानपर चले जाने को तैयार हैं परन्तु यह स्थान छेडनेकै पूर्व में सने एकनार अषि दर्शन अभिलाप है। आशर है, आने वय वह कर उनकी इच्छा पूर्ण फॉमें यह सुन हामी अपने भाई बम सात महिमपाहीले घर र गया । परन्तु ज्यों ही चहाँ पहुँच उसने उक्त पानापनके परिवारबाटी बहू दशा देखीं ये ही सच्चा उस अपने गले लगा दिया । अन्तर्मे हम्मीने मी अन्तिम रूप करनेका निश्चय कर अपना २३ आदि रानियाँ र पुत्री देवलको ३ : झर रिलेके द्वार खोल दिये जोर ससैन्य बाहर निकल शाही फौजपर आक्रमण कर दिया । झा समय तक यह होता रहा। परन्तु कन्तमें महिमराही, परमाद क्षेत्र, बरम आदि मैनापतिं मारे गये और हम्मीर भी क्षतविक्षत हो गया । यह दशा देख मुसलमानों द्वारा जापने जीवित पकड़े जाने मयसे वर ही उसने अपना गो फाट परलोककी रित लिया । यह धरना श्रेषण अङ्घा ६ g i 1 उपर्युक्तः वृत्तान्त फारसीं तारीखतं मिटता अ] मेरो घहूग कुछ इक्ष्य है । परन्तु इसमें हुम्के पिता जैसा अटाइनको कर दैनः इखा है इह ठीक प्रतीत नहीं होती, क्यों कि वि. सं. ११५३