पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/३३६

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नाढल और जालोरके चोहान । हुयूड’ लेव के ११ वें श्लोकसे विदित होता है कि, जिस समय { चौक्य) चुर्लभराजकी सेना महेन्द्रको सताया था उस समय राष्ट्रकूट रामा घचलने इसी सहायता की थी । | प्रोफेसर ही० आर० माण्डरकारने इस दुर्लभराजको विग्रहराजका भाई और इत्तराधिकारी लिखा है। पर बास्तबमें यह चामुण्डराजा पुत्र और वङ्गमराजका छोटा भाई व उत्तराधिकारी था। इयोश्रय काव्यने लिखा है

  • मारताड़नाल राजा महेन्द्रने अपनी बहन दुर्लगस्ययवरमें गुजरात चौलुक्य राजा दुर्लभराजको भी निमन्त्रित किया था। इसपर वह अपने छोटे भाई नागराजसात स्वयंवर उगाया । यद्यपि इपरम का आदि अनेक देशकै राजा एकत्रित हुए थे, तथापि दुलंगदेने गुजरात राजा दुर्लमराजको ही वरमाला पहनाई । अतः महेन्द्र ने अपनी दूसरी वहन लक्ष्मीको विवाह दुर्लभकै छौटे माई नामगजके साथ ६ दिया ! | सम्मर हैं, कविने प्राचीन कवियाकी शैलीका अनुसरण करके हैं। *वयरमें मन' राजाओंकें एकत्रित होको फल्गना की होगी ।

| ६-अणहेिछ । या महेन्द्रका पुन र उत्तराधिकारी का । ५५ पूर्व लैजानुसार सुंधा पहाढीकै लेरामें महन्दुराज और अण के वय अश्वपाल र अहिठकै नाम दिये हैं, तथापि रायबहादुर १६ गैर इराने भालके उपर्युक्त ताम्रपन अधिारपर महे वाई गणता । होना माना है। धाके ले पसे प्रकट होता है * अहिडने गुजरात राजा भीमड़ी जैमाको म ।आगे चलकर उसी छेसमें लिप्त है कि उसके बाद १) E; 15, Fls, p. 28,