पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/३४३

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भारतके प्राचीन राजर्या समान उपचिवालै वो राजा कैसे अन्य करते थे । मो० डी० आई० भाम्डारकरका अनुमान है कि सम्मवतः इछ समय राज्य करने के बाद अभ्यराज और कटुकजसे अणहिंङवाईका राजा सिद्धराज जयसिंह अप्रसन्न ६ गया और इनके स्थानपर उसने इनके कुटुम्बी रायपालको नियत कर दिया होगा । इसे रायपालक का नाम मानलंदेव था । इसके दो पुत्र हुए–रुद्रपाल और अमृतपाल । उपर्युक्त प्रोफेसर माण्डारकर ४ छेत्र मिले हैं। ये वैज्ञाक ( वैजल्लदेव ) के हैं । यह कुमारपाला दंडनायक और नाडोलका अयिका या । इससे प्रकट होता है हि जिस समय वि० सं० १९०७ के निकट कुमारपालने सांभरपर हमला किया और अराजको हराया, उस समय पायद यिपाल जिसको कुमारपालने नाडोलका राजा नियत किया पी, अपने चंकी प्रधानशास्त्राके राज्य रक्षाके लिये शाकंभर चौहान राजाकी तरफ हो गया होगा । तथा इससे कुमारपालने मराज और झट्करानकी तरह उसको भी राजमझे बूर कर इिंया होगा । इसके प्रमाणवरूप उपर्युक्त ४ ॐख हैं। इनमें पहला वि० सं० १२१० का चाल परगने के भटूड गाँव से मिला है, दूसरा वि० सं० १२१३ के सेवा महावाके मन्दिरमें लगा है, तीसरा, पिः स १२१३ को घाणेराव में है और चौथो वि० सं० १२१६ का मालीकै बहुगुणमाता मन्दिरमें लगा है । इनसे प्रष्ट होता है #ि बि सं० १२१८ से १२१६ त भाञ्चलके आसपास कुमारपाई देनायक विजलका अधिकार या ।। | वि० सं० १२०९ का एक लेख पाली ( मारवाड़ ) के समय अन्विों लगा है। इसमें भी कुमारपालका उल्लेख है।