पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/३५१

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भारतके प्राचीन राजवंदा इसमें प्रच्ट होता है कि उपर्युक्त कासवसे माबू पारु ( राही उपमें ) के कायद्भा गवसे ही तात्पर्य है और करन और बाराबरससे केल्हण और धारावर्षी ही उल्लेख है । तथा दक्त के साय ही उसका भाई कीर्तिपाल भी युद्धमें सम्मिलित हुआ होगा । हम इस युद्धका वर्णन के इतिहासमें भी कर चुके हैं । कीर्तिपालका दूसरा नाम कौतु या 1 कुंमगइसे मिले कुम्भकर्णके में प्रकट होता है कि गुहिलोत राजा कुमारसिंहने से अपना ज्य पझ्झा न लिया था। किंराड़कें लेस ३६१ कर्ने निम्नावित पद लिंखा हैं -

  • श्रीनाबाल्पुिरियत रचनाळराजेश्वर ” इस अनुमान होता है कि नहोम स्ाीं लाने पर भी पद इसने नाहौलकी समतलभूमिकें बनाय जालौरकै पार्षीय दुर्गम और हर दुर्गमें रहना अधिक लामजनका उमझा होगा और चाँपेर टुर्ग बन* वाका प्रबन्ध दिंया होगा । लेखादिम जालोर। पर्वतमालाका उल्लेख वाचन नाम किया गया है और चिन नाम सोना है, अन’ सपना नागर और दुर्ग भी सोनलगद्ध नागसे प्रसिद्ध था और दहीपर रह मैके कारण केनिपाके चंदन सोनगरा काये । इसका तम्पर्य नाराय-अप इगुवर्णगिरि के निवानियां है ।।

सके तीन पुत्र ये-ममसिंह, हल्लिमपछि और अभयपाल ! इस न्याका नाम रूइल यी । इuने जामें दो शिवमन्दिर केनचाये में। | जालोर परवाने के दरवाजे पर वि० १० ११.७४ का एक लस * में । इसमें परमारके में घना बाक्पतिराज, चन्दन, अरः15, विमल, पाशवर्ष, ईरल र सिँधुनको ना ना ?। इससे PER