पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/३६

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भारत के प्राचीन राजवंश सारनायते फुमन राजा कनिष्कके राज्यके तीसरे वर्षका एक लेख मिला है। इससे प्रकट होता है कि महाक्षत्रप सर पलान कामरकका सूबेदार था । अतः यह बहुत सम्मन है कि महाक्षवप होने पर भी ये लोग किसी बड़े राजाके सूबेदार ही रहते हों। पृथक पृथक चंश । ईसा पूर्वकी पहली दातान्हीसे ईसाकी चौथी शताब्झा मध्य तक भारतम क्षत्रपति तीन मुख्य राज्य थे, दो उच्चरी और एक पश्चिमी भारतमें । इतिहासज्ञ तक्षशिला ( Tarilar उत्तरपश्चिमी पमान) और मथुराके क्षत्रपोंको उत्तरी क्षत्रप तया पश्चिमी भारतके क्षेत्रों को पश्चिमी क्षनप मानते हैं। राज्य विस्तार । ऐसा मतीत होता है कि साकी पहली शताब्दीके उतार्थ ये लोग गुजरात और सिन्धसे होते हुए पश्चिमी भारतमें माये थे। सम्भवतः इस समय ये उत्तर-पश्चिमी मारतके कुदान राजाके सूबेदार ये। परन्त अन्तमें इनका प्रभाव यहाँतक बहा कि मालबा, गुजरात, काठियावाड़, कच्छ, सिन्ध, उत्तरी कौन और राजपूतानेके मेवाड़, भारवाह, सिंगही, हालाबाह, कोटा, परतापगड़, किशनगढ़, डूंगरपुर, वासनाड़ा और अजमेरत इनका अधिकार होगयो । जाति । यदपि पिउले क्षत्रपोंने बहन का भारतीय नाम धारण कर दिये थे, केवळ 'जद (सव ) और 'दामन 'न्ही दो शदास इनकी वैदेशिकतामाट होती थी, तथापिहनका विदेशी होना सर्वसम्मन है। सम्भवतः ये लोग मध्य एशियासे आनेवाटी दरा-जातिके थे। भूमक, नपान और चटनके सियों में सरोष्ठी अक्षरों के होने से तथा महपान, चपन, समोलिक, दामजद आदि नामोंसे मी एका विदेशी टोना ही पद है। ( RE, III 1. (२)Ep. ind, VOL. Vil1 p:38.