पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/३७

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क्षनप वा। नासिकसे मिले एक लेखमें क्षत्रप नहपान जामाता उपनदानयो शक लिया है। इसमें पाया जाता है कि, यद्यपि करीब ३०० वर्ष भारत में राज्य करके कारण इन्होंने अन्समें भारतीय नाम और धर्म रहण कर लिया था और क्षत्रियों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध गी करने लग गये थे, तथापि पहलेके क्षनप वैदिक और बौद्ध दोनों धोको 'मानते थे और अपनी कन्याओं का विवाह केवल गोसे ही करते थे। भारतमें करी ३०० वर्ष राज्य करनेपर मी इन्होंने 'महाराजाधिराज' 'आदि भारतीय उपाधियाँ ग्रहण नही की और अपने मियमोंपर भी शक-सयत ही लिखवाते रहे । इससे भी पूर्वोक्त बातकी पुष्टि होती है। रिवाज । जिस प्रकार अन्य जातियों में पिताके पीछे क्या पुन और उसके पीछे उसका लड़का राज्यका अधिकारी रोता हे उस प्रकारक्षनपोंके यहाँ नहीं होता था। इनके यहॉ यह विलक्षणता थी कि पिता पाछे पहले बहा पुन, और उसके पीछे उससे छोदा पुन । इसी प्रकार जितने पुत्र डोथे ये सब उमरके हिसाबसे क्रमशः गद्दी पर बैठते थे । तथा इन सबके मर चुकने पर यदि बड़े भाईका पुन होता तो उसे अधिकार मिलता था अतः अन्य नरेशोंकी तरह इनके यहाँ राज्याधिकार सदा बडे पुनके घशमें ही नहीं रहता था। शक संवत् । फर्गुसन साहबका अनुमान है कि क सवत् कनिष्पने चलाया था। परन्तु आज कल इसके विरुद्ध अनेक प्रमाण उपस्थित किये जाते है। इनमें मुख्य यह है कि कनिष्क शक वशका न होकर मान यशका था। लेकिन यदि ऐसा मान लिया जाय कि यह संवत् सीने प्रचठित किया था, परन्तु क्षत्रपोंके आकार-प्रसारके साथ जनके लेखादिकाम लिखे जाने से सर्वसाधारणम इसका प्रचार हुआ, और इसी कारण इसके चलाने वाले कुशन राजाके नाम पर इसका E Ind, rol VTIL P. 85.