पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/४

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इसका खुलासा हाल इसी भाग के परमार-वंश के इतिहास में मिलेगा।

परन्तु अब समय ने पलटा खाया है। बहुत से पूर्वीय और पश्चिमीय विद्वानों कै संयुक्त परिश्रम से प्राचीन ऐतिहासिक सामग्री की खासी खोज और छानबीन हुई है। तथा कुछ समय पूर्व लोग जिन लेखोको धनके बीज और ताम्र-पत्र को सिद्धमन्य उमझते थे उनको पड़ने के लिए वर्णमालाएँ तैयार हो जानेसे उनके अनुवाद प्रकाशित होगये हैं। लेकिन एक तो उक्त सामग्रीके भिन्न भिन्न पुस्तकों और मासिकपत्रोंमें प्रकाशित होनेसे और दूसरे उन पुस्तकों आदिकी भाषा विदेशी रहनेसे अँगरेज नहीं जाननेवाले सँस्कृत और हिन्दी विद्वान् उससे लाभ नहीं उठा सकते। इस कठिनाईको दूर करनेका सरल उपाय यही है कि भिन्न भिन्न स्थानों पर मिलनेवाली सामग्रीको एकत्रित कर उसके आधापर मातृभाषा हिन्दी में ऐतिहासिक पुस्तके लिखी जॉय। इसी उद्देश्यसे मैंने 'सरस्वती' में परमारवंश, पालवंश, सेनवंश और धान्नपवंशका तथा काशीके 'इन्दु' में हैहयवंशका इतिहास लेख रूपसे प्रकाशित करवाया था और उन्ही लेखको चौहानवंशके इतिहास-सहित अब पुस्तक रूपमें सह्रदय पाठकोंके सम्मुख उपस्थित करता हूँ। यद्यपि यह कार्य किसी योग्य विद्वानकी लेखनी द्वारा सम्पादित होनेपर विशेष उपयोगी सिद्ध होता, तथापि मेरी इस अनधिकार-चर्चाका कारण यहीं हैं कि जबतक समयाभाव और कायधिक्य कारण योग्य विद्धनोंको इस विषयकों हाथमें लेनेका अवकाश न मिले, तब तकके लिए, मातृभाषा-प्रेमीयोका बालभाषितसमान