पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/४९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

नहपान चाँदीके सिक्कोंमें एक तरफ राजाका मस्तक और मांक अक्षरोकर लेख तथा दूसरी तरफ अधोमुख बाण, बर और बाही तथा खरोष्ठी लिपिमें लेख रहता है। परन्तु इसके तरिके सिकों पर मस्तकके स्थान में वृक्ष बना होता है। इसी नहपानके चाँदीके कुछ सिक्के ऐसे भी मिले हैं, जो असलमें इसके ऊपर वर्णित चाँदीके सिक्कोंके समान ही होते है परन्तु उन पर आन्नवंशी राजा गौतमीमुन श्रीसातकणीकी मुहरे भी लगा होती है । ऐसे सिक्कों पर पूर्वोक्त चिह्नों या लेखोंके सिमा एक सरफ तीम चश्मा (अर्धवृत्ती ) का दैत्य बना होता है जिसके नीचे एक सर्पाकार रेखा होती है और बाली लिपिमें "रानो गोतमि पुतस सिरि सातकपिस" लिखा रहता है तथा दूसरी तरफ उज्जमिनीका चिन्ह विशेष बना रहता है। चपन और उसके उत्तराधिकारियों के चाँदी, तांबे, सीसे आदि धातुओंके सिक्के मिलते हैं। इनमें चांदी के सिक्के ही बहुतायतसे पाये जाते हैं। अन्य धातुओकिसिम अब तक बहुत ही कम मिले हैं। तथा उन परके लेख भी बहुधा संशयात्मक ही होते हैं। उन पर हाथी, घोडा, येत अगषा चैत्यकी तसवीर बनी होती है और हाही लिपि लेस लिखा रहता है । सीसेके सिक्के केवल स्वामी रुद्रसेन तृतीय ( स्वामी रुद्रदामा द्वितीयके पुत्र) के ही मिले हैं। क्षक चयकि सिक्के गोल होते हैं। इनको प्राचीनकालमें कार्पापणा करते थे। इनकी तोल ३४ से ३६ गन अर्थात् की १४ रतीक होती है। मासिकसे जो उपवद्रातका श०सं० ४२ वेशाराका लेख मिला उसमें ७०००० कार्यापणोंको २००० मुवों के बराबर लिखा OFT.ind Vil, VIII. 82,