पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/५८

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इसे मोर्यवंशी राजा चन्द्रगुप्त (ईसाके पूर्व ३२२ से २९७ ) के सूबेदार वैश्य पुप्याने बनवाया था। उक्त चन्द्रगुपके पौत्र राजा अशोकके समय ( ईसाके पूर्व २७२-२३२) ईरानी तुपास्फने इसमें से नहरें निकाली थी । परन्तु महाक्षनप रुदामाके समय मुवर्णसिकता और पटाशिनी आदि नदियोंकि प्रवाहसे इसका बांध टूट गया। उस समय उक्त राजाके पेझार सुविशाखने इसका जीर्णोद्धार करवाया। यह सुधिशास पदब-बंशी फुलापका पुत्र था । तया इसी कार्यकी यादगारमें उस लेख परमार पर्वतकी उसी चट्टानके पीछे खुदवाया गया था जिसपर अशोकने नहरें निकलवाते समय अपनी आज्ञाय खुदवाई थी। अन्त में इसका बाँध फिर टूट गया। तब गुप्तवंशी राजा स्कन्दगुप्तने, ईसवी सन ४५८ में, इसकी मरम्मत करवाई। - दामजश्री

(दामसद) प्रथम ! [- 1-1-1(ई. स. १५०-१७६-वि० सं० २०४-२३५)] यह रुद्दामा प्रथमका पुत्र और उत्तराधिकारी था । यद्यपि इसके भाई रुद्रसिंह प्रथम और भतीजे स्ट्रसेन प्रथमके लेखोंमें इसका नाम नहीं है तथापि जपदामाका उत्तराधिकारी यही हुआ था। इसके भाई और पुत्रके संववाले सिकोंको देखने में पता चलता है कि दामजद के बाद इसके भाई और पुत्र दोनोंमें राज्याधिकारके लिए झगडा चला होगा । परन्तु अन्तम इप्सका माई रुद्रसिंह प्रथम ही इसका उत्तराधिकारी हुआ। इसीसे रुदसिंहने अपने टेसकी यशावलीमें अपने पहले इसका नाम म लिख कर सीधा अपने पिताका ही नाम लिख दिया है। बहुधा वंशावलियों में लेखक ऐसा ही किया करते हैं। - इसने केवळ चाँदीके सिक्केही ढलवाये थे। इन पर क्षत्रप और महाक्षत्रप दोनों ही उपाधियां मिलती हैं। इसके क्षत्रप पापियाले मिचकोपर "रा महाक्षपस रुददामपुनस गोक्षापस दामध्यवरा" या "राज्ञो १८