पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/६०

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भारत के प्राचीन राजवंश- ________________

है । यद्यपि उक्त सवत् सट तौर से लिवा पड़ा नहीं जाता तथापि इसके बचा रुद्भसिंह प्रथमके सिक्कोंपर विचार करनेसे इसका कुछ कुछ निर्णय हो सकता है । म्द्रसिंह पहुली बार श० सु. १०३ से ११० तर्क और दूसरी बार ११३ चे ११८ या ११६ तक महाक्षप रहा या। इससे अनुमान होता है ॐि या तो जवामा इन हों पर शू० स० १०० से १०३ तइकें या ११० से ११३ तकके वच सयतू होंगे। क्योंकि एक समयमें दो महाक्षत्रप नहीं होते मैं । इन विझोके ले। आदि बहुत कुछ इसके पिता सिक्कों के रेसादसे मिलते हुए है। | इसके दूसरी करके मि ॐ पर एक तरफ * राज्ञो महासत्रास द्दामजद्म पुरस राज्ञो महाक्षपस जीवदामन" और दूसरी तरफ इश सु, ११९ र १२१ टिसा रडता है। ये 8 बड़े इसके पचा हि प्रथमके सिंकर्स बहुत कुछ मिटने दूर हैं। जीवदामा मिअधातुके घेयकों पर उसके पिताका नाम नहीं होता । केवल एक तरफ "ज्ञोमहाक्षेत्रपस जीवदामम" लिखा होता है और दूसरी तरफ शक-सवत् बिता रहता हैं जिससे अब तक केवळ ० १८ ११५ हीं पर मपा है । ज्ञान तक ऐसा एक भी स्पष्ट प्रमाण नहीं मिला है जिससे यह पता घलै 1 रुद्रGि के महाक्षत्रप रहने के समय आयामकी उपाधि क्या भी। | झसिंह प्रथम ! | [ • • •५- १५८, ११९ (ई. ए• १८०-१५६, १९॥ १-३० • ३१-३५१,५४ }} | प कद्दामा प्रपम' पुन और दमनका छोरा माई था। चा। और मिगतुके सि के निळे है। इसके पना मना है कि यह ० ० १०३-१०३ नफ क्ष और वा सु. १० ते ११• सई