पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/६५

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क्षबप-वेश । इसके केवल दकि महानप उपाधिबाले सिक्के हीं मिले हैं। इन | पर एक तरफ * राज्ञो महाक्षत्रप कुमास पुचस राज्ञो महाक्षत्रपस्य धाम्ना गौर दूस। सरफ श० सं० १४५ १५५ लिदा होता है। श० सं० १४४ में इसका बड़ा माई रुद्रसैन प्रथम और श० सं। १४५ में इराफा उत्तराधिकारी दामसेन महाक्षत्रप था 1 अतः इसका राज्य इन दोन वर्षों मध्यमें ही होना सम्भव है। शमसेन । [६० सं० १४५---१५८ ( ई० सु. ३३३-२३६=वि० सं० १८०-२५३)] यह रुद्रसिंह प्रयमका पुत्र था। इसके चॉदी जोर मिश्रघातुके सिक्के मिलते हैं। चादीके सिक्कों पर उलटी तरफ" राज्ञी भक्षत्रप साहू उस राज्ञी महाशत्रपसे दामसेनस " और सीधी तरफ श० सं० १५५ से ११८ तक का फोई एक संवत् लिङ्गी रहता है । इसमें प्रकट होता है कि इसने श० सं० १५८ के करीब तक र राज्य किया था। क्योंकि इसके बाद वा० सं० १५८ र १६१ के बीच ईश्वरदत्त सहाक्षत्रप हो गया था । इस ईश्वरदत्त रिकों पर दाक-संवत् नहीं लिखा होला । कैयह उसका राज्य-वर्ष ही लिंगा रहता है । | श० सं० १५१ के दामनके चादीके सिक्कों पर भी { सिंह प्रथमके क्षय उपाधिशले १ ६ ११० के चांदी के स्किॉझी झरह) चैत्यकी बाईं तरफला चन्द्रमा दाई तरफ और दाईं तरफ़ा तारामण्डल बाई तरह होता है। | इफे मिला 10वकों पर नाम नहीं होता कंबल वित्री हो जाना जाता है कि ये सिक्के भी इसके समपके हैं। इसके चार पुत्र थे । यरिदभा, यशोदामा, विजयसेन और दामादर्भ ( प्राय)।