पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/७०

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विपश। विजयसेनके शङ्क-सं० १६७ र १६८ के द्वले सिकॉमें लेकर इस वहाक समाप्ति तक छिमें उत्तरोत्तर कारीगरीका हास पाया जाता है । परन्तु बीचमचमें इस ह्रासको दूर करने चेष्टाका किया जाना भी प्रकट होता है । दामजश्री तृतीय । [ ३०-० १७३( या १५३ }-१७६१ ३० स० २५० } { । ३५१ } ३५४==३० सं० ३०५ ( या ३०८ -३११ )] यह दामसेनका पुत्र था और श० सं० १७२ या १०३ में अपने भाई विजयसेन। उत्तराधेिझा हुआ ! | झाके महाक्षत्रप उपाधैिवाले चाँदीके सिके मिले हैं। इन पर उलट्टी तरफ 4 राज्ञ मापस दामसेनपुत्रस ज्ञरे महाक्षत्रपस दामजदयः या *... भिय" -और सांघी तरफ संवत् लिखा रहता हैं । रुसेन द्वितीय । 1 माफ-सं। १५८ {{}--१६ १ ई० स० २५६ (3)—२४ Ef३० सु ||१३ --३३१)] यह चीरदानका पुत्र और अपने चचा दामजदुश्री तृतीयका उत्तरधिकारी यो । इसके इसपर बयत साफ पड़े न जानेके कारण इसके राज्य-मयका निशत करना कठिन है । इसके सिरपरका सबसे पहला दत् १६ र १६९ के बीचका और विरी १९६ होना चाहिए । इसके माप उपाधेिवाले चाँदीके सिक्के मिले हैं । इन पर उटी तरफ * राशः क्षपस रामपुत्रस शो .महाक्षत्रपस रुद्रसेन्स " और सीधी तरफ शक-६० लिसा रहता है । शके पुत्र थे । बिड न भर्चुदामा ।