पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/७२

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क्षत्रय-चंश । इसके सिक्फोसे पहले सिक्के तो इसके भाई विश्वसिहके सिक्कों से मिलते हुए हैं और शु०-६० २११ के बाद इसके पुत्र विश्वसेनके रसेवक से मिलते हैं । इसके पुत्रका नाम विरुष सैन थे । विश्वसेन । [ ०-० ३१६-२२६(३० १० ११४-३०४=वि सु. ३५१-३६१}] | यह मदामाका पुत्र था । इसके श०सं० २१६ से २२६ तक नप उपापियले चाँदीके सिक्के मिले हैं। इन पर 4 राज्ञो महाक्षत्रपस भवामपुत्रस राज क्षपस बिज्ञसेनस लिखा होता है । परन्तु इन सिवपके सन् विपत्र स्पष्ट नहीं मिले हैं। दूसरी शापा । पूर्वोक्त बप विश्वसेंनसे इस शाखाकी समाप्ति होगई और इनके राज्यपर, स्वामी जबदामा बशजका शिकार हो गया । इस जीवापाकै नाम के साथ स्वामी' शब्दके या 'जा' क्षत्रप' या *भाष की एक । उपधं नहीं मिलती, परन्तु इसकी जमकी उपाधिसे और नामके पिछले भाम 'वामा' दफे होनेसे अनुमान होता है कि इसके और पहनके वंशजकै आपसमें कोई निकटका है सम्बन्ध था। सम्भवतः यह उसी वशीं छोटी शाखा ही तो अभी नहीं । | मुक्त क्षेत्र नके वर्षों में यह नियम था कि राजाकी उपाधि महाक्षत्रप और उसके युवराज या उत्तराधिकारीकी क्षमप होती थीं। परन्तु इस (यानी वदामा) के वैशमें श०सं० २७० तक यह नियम नहीं मिलता है। पहले पहल केच इत्ती (२४० ) संवत् स्पभी संदसेन तृतीयके सिक्कों पर उसके पिता नामके साथ 'महाक्षनेप' उपाधि । भिल है ।