पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/७६

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क्षन्न-वंश । अन्तर प्रतीत नहीं होता हैं अतः 'सिंह' को “ सेन' और 'सेम' को सिंह भी पढ़ सकते हैं। हम पहले लिख चुके हैं कि इसके कुछ सिक्कों पर राजा महाक्षत्रप ” | और कुछ पर "महाराजा क्षत्रप” लिखा होता है। परन्तु यह फना फाउँन है कि उपर्युक्त परिवर्तन किसी खास वेवसे हुआ था या यही हो गया था । यह भी सम्भव है कि महाराजा'की उपाधिको नकळे इसमें अपने पीस-यक्षिण वैकुटक राजाओं के सिक्के का है; क्योंकि ६० स० ३४९, में इन्होंने अपना बैंकृटक संवत् प्रचलित किया था। इससे प्राप्त होता है कि उस समय कूटका प्रभाव छूय बढा हुआ था। यह भी सम्भव है कि ये फूट राजा ईश्वदृप्तके उत्तराधिकारी / अरि इन्हीं |चढ़ाई अइिके कारण रुद्रुसेन तृतीय राज्यमें १३ वर्षके लिये और उसके पहले (श० सं०२५४ और २७६ के बीच) भी रोक्के झालनर बन्द सिंहसेन के कुछ सिक्कों में संवत् अङ्कके पहले 'य' लिखा होने का अनुमान होता है। इसके पुत्रमा नाम स्वामी रुइसेंन था । स्वामी इमेन चतुर्थे। [ ०-० ३०४-३३० (३" स• ३८३-३८=वि० सं० ४३१-४४५) के बीच ] यह स्वामी चैनको पुत्र और उत्तुचेका था । इसके चहुत थी। चाँईके सिक्के मिले हैं। इनपर *राज्ञ महाक्षपस स्वामी हिम पुस (राश हुक्षन्नपस लामा रुद्रेनर' लिखा होता है । इसके सिंह को पर अर ऐसे पात्र हैं कि इनमें जाके नाम अगले दो अक्षर 'रुद अन्दसे ही पंई गये हैं। इन सिक्कपरके संवत् भी नहीं पड़े जाते । इसलिए इसके ग्य-सगया पु पोरसे निश्चित करना है।केंपळ Rapoa's catalogao ot the corns at the Atlet ad Flissaya lyrusty [ 0 YIII. ३५