पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/८१

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मरतकें प्राचीन राजवंश सहायता की हो । इन दोनोंसे मश, कन्नौजका भाव १ तीसरा ) होना चाहिये, जिसके समयके लेख वि० सं० ११९, ९२२, १३३, और १ हर्ष ) सं० २७६= वि० सं० ९३९) के मिल चुके हैं । वल्लमराज, दक्षिणके राष्ट्रकुट ( राठौड ) गुजा कृष्णराज ( दूसरे ) का उपनाम था । बिहाके लेखमें, कोकच्चदेवके समय दणि प्याराना होना साफ साफ लिखा है, इसलिये इमरज, यह भाम राठोड कृष्णराज दूसरेके वास्ते होना चाहिये जिसके समके लेल श० हैं ० १८९७ १ वि० स० १३३ }, २५ ( वि० १५७), २४ (विं० १५६) और ८३३( चि ९६८) के मिले हैं। राठोडे।के लेसोंसे पाया जश्ता है कि, इसका विवाह, चेदीके जि। कोकड़की पुत्रींसे हुगा था, जो सकुक्ककी छोबहिन थीं। चिड, जोजाहुति ( बुन्देलखण्ड़ ) में प्रसिद्ध स्पान है, इसलिये श्रीहर्ष, महोवाका चन्देल राजा, हर्ष होना चाहिये जिसके पौत्र धगदेव समयके, वि० सं० १९११ और १०५५६ लेस मिले हैं। शङ्करगण कहाँको राजा था, इसका कुछ पता नहीं गलत । कोहके एक उनका नाम इरिगा था, परन्तु उसका संबध इस थानपर ठीक नहीं 'प्रतीत होता । । उपर्युक्त प्रमाणके आधार पर कछवा राज्यरामप वि.सं. १३० से ९६० के बीच अनुमान किया जा सकता है। इसके १८ पुन ३, जिनमेसे बड़ा ( मुग्धतुग ) त्रिपुरा राना भी, और दूसरों को अग अग महल (जार) निले' । फोकसकी स्वीका नाम नरदेवी या, जो चन्देलवश धी । इसे धन ( मुग्यहैं ) का जन्म । नट्टादेयी, अन्दै हुर्षी मदिंन या बेटी हो, तो आर्य नहीं । | कोई पीछे उरका पुन मुग्धतुंग उसका उराधिकारी दुगा । { {१} EP Iad Fol J, ", ५५ । ३॥