पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/८८

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यद्यपि हिंसित इन अतिशयोकेमू अघश्य हे; तथापि यह तो निविद् ही है कि कर्ण बड़ा वीर था और उसने अनेक युद्ध में विजय प्राप्त थी श्री ।। | प्रबन्धचिन्ममि सदा वृत्तान्तु इस तरह लिखा है:| शुभ लग्नमें ल देशके शार्की दुमत नाम्प मनसे फर्णका जन्म हुआ । वह बढ़ा वीर और नीतिनिपुण था । १३६ राजा उसी | सेवामें रहते थे। तथा विद्यापति आई महावयासे उसर्फ सभा विभूfपित था । एक दिन दुत बार उसने जसे कहलाया--"अप नगरीमें १८१४ महल पके बनवाये हुए हैं, तथा इतने ही आपके fiत प्रचन्ध अछि ६ । और इतने में आपके खिताब भी । इलिये या । अदमें, शाखामें, अया दानमें, आप मुझको जीत कर एक सौ चित्र चिंताब धारा काजेये, नहीं तो उपको जीतकर मैं १३७ राजाओंको मालिक होऊँ ।” बलवान् फाशिराज का यह सन्देश सुन, भीनका मुसा मान हो गया । अन्तमें भेजके बहुत कहने सुनने से न के नीच यह बात ठहरी है, दोनों राजा अपने धरमें एक ही समयमें एक ही सुरके महल बनवाना प्रारम्भ करे । तथा जिसका महल पहले बन जाय वह दूसरे पर चिंकार कर ले। कने वाराणसी ( बनारसका ) में पर भेजने उर्जनमें महङ बनवाना प्रारम्भ किया । कृर्णका महल पहले तैयार हु । परन्तु भोजने पहले की हुई प्रतिज्ञा भंग कर दी । इसपर अपने सामन्तों सात करों में भोजपर चढ़ाई की । तथा भोजका आधा राज्य देने की शर्त पर गुजरतके राजाको भी साथ कर लिया। उन दोनों ने मिल कर मालवेंकी राजधानको घेर दियो । उ अबसर पर वर भोगका देहान्त हो गया। यह सच १ ते ६ फनि कि तौढ़ कर जका सारा दिनाना रूट लिया । यह वैस्य भीमने अपने संधविंयहिक मंत्री (3linister of gace nnd sre ) डारको 9