पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/८९

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भारतके प्राचीन रावश झज्ञा दी कि, या तो भीमका जाधा राज्य या दो सिर ३ ।। यह सुन कर दुइपरके समय डामर बत्तीस पैदल सिंगायों सहित कर्णक ममें पहुँचा और सोते हुए उसझे घेर लिया । तर ने एक तरफ हुवर्णमापका, नीलकण्ठ, चिन्तामणि, गणपति आदि देवता और दूसरी तरफ भोज राज्यको सुर्मा समुन्द्ध रख दी । फिर हागरसे कह * इमेसें चाहे जॉनसा एक मार्ग ले लो। यह सुन सोलह पर हाई भीमकी आज्ञासे मरने देवमूर्तिदाछा भाग के जिथः । । प्रदत्त वृत्तान्त भजपर का हमला करना, उस समय जंजर मोरकी मृत्युका होमा, तथा उसने राजधानीका कर्णद्वारा छुट्टा जान प्रकट होता हैं। | नागपुरते निकै हुए परमार राना इमई लैश भी उपरोक्त वातर्फ सत्यती मालूम होता है। उसमें हिंसा है कि मोनके मरने पर उनके राज्य पर विपत्ति छा गई थी 1 उस विपत्तिको मोजके सूटम्वी उदया दिव्यने दूर किया, तया कृणवानों से मिलें हुए राजा कर्णसे अपना अन्य पृने छीना । । उदयपुर ( ग्वारियर ) के उससे मी यही बात मकट होती है । हेमचन्द्र ने अपने बनाए साथ्य काव्य १ व समं लिखा है कि -* संधके राजाको त कुरके भने दिन कप्त पर पढ़ाई की । प्रथम भाभदैयनै अपने दादर नामक दूरी की ग़भामं भैज्ञा । इराने वहाँ पहुँच करके कई बीरताकी प्रशंसा की । और निवेदन किया कि गन्ना म यह जानना चाहता है के आर हमारे TH या शY यह सुन कर्णने उच्चर छिया-त्पुम्पाकी मैत्री हो त्रामाविक केतः ही है। इसपर भी भमके य आने वात सुनकर (!)Er Ind tol II, P, 185 () EP Icd vol I, P, 215 ३८