पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/९०

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इय-यं । मै यहुत ही प्रसन्न हुआ । सुन मेरी तरफ ये हाथी, घोड़े और मोगका सुच-मण्डफिया के ज्ञाझर भीम भेट झरना साथ ही यह भी कहना कि वे मुझे अपना मित्र समझें।" परन्तु ऐमयन्द्रका लिसा उपर्युक्त वृत्तान्त सत्य मालूम नहीं होता। पर्पोकिं चैदिपरक भीमकी चंद्राईके सिवाय इा नहीं है। और प्रपन्धचिन्तामणिझी पूर्वक कृथा पफ जाहिर होता और कहीं भी जिफर है कि, जिस समय कृपने माल पर चढ़ाई की इरा उमय भीम हायतार्य युलाया था । और वहों पर हिस्सा करते समय उन दोनों यच झगडा पैदा हुआ था, परन्तु सुवर्णमण्डपका और गणपात आदि देवमूर्तियां देकर कर्णने चुलह कर डी । इसके सिवाय हेमचन्द्रने जो कुछ भी ममकी चेपिरक चदाईका तर्णन क्रिया है वह कृल्पिते ही हैं। हेमचन्द्रने गुजरातके सोलं राजाओं का महत्त्व प्रकट करनेको ऐसी ऐसी अनेक कृयाएँ लि दी हैं, जिनका अन्य प्रमाण कल्पित होना सिद्ध हो चुका है। फश्मिीरकै बिल्हण कविने अपने रचे विक्रमादेवचरित कायमै शाहलके राजा कर्णका करिके राना डिये फलिप होना रिग है। | प्रबोधचन्द्रोदय नाटकों पाया जाता है कि, चेदिके राजा झर्णन, झलिक्षरके राजा कीर्तिवर्माका राज्य न लिया था। परन्तु कीर्तिवमके | सिमेनपान गाने के अन्यको परास्त कर पीछे से कुढिंझरका सजा बना दिया। विरहणविके लेसे पाया जाता है कि पशि चालुक्य राजा सोनेश्वर ५थमने कर्णको हराया। डास्थित प्रमाणोंसे कर्णना अनेक पड़ोसी राजापर विजय प्राप्त करना सिद्ध होता है। उसकी रानी देवी पनातिकी थी। उससे यश कर्णदेनका जन्म हुआ। (१) विक्रमांकरित, स्वर्ग 1८, १३ । १६