पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/९२

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देहय-चश ! यश.के समय चैवियफ कुछ हिस्सा कन्नोजकै होहोंने दया ‘लिया था। वि० सं० ११७७ के राठोई गैबिन्द्रचन्द्र के दामपत्र लेरा हैं कि यक्षःकर्णने ज य इद्रीशबको दिया था यह व उसमें विन्दचन्दकी अनुमतिले एक पुरुषको दे दिया। चे० सं० ८७g ( वि० सं० ११७९) का एक ताम्रपत्र यशकदेयका मिला है। उसका उत्तराधिकारी उसका पुन मपकर्णधेघ हुआ । | १२पकर्णदेव ।। यह अपने पिताके पीछे गद्दे पर बैंठी । इसका विवाह मेघाहके मुहल राजी विजयसिक फुन्या आव्हसे हुआ था। यह विजयसिंह बारासंहका पुत्र और हंसपालका पौन था । आ धी माताका नाम यस्मादेषी था । यह मालवैके परमार राज उगादित्यकी पुत्र था । आहादेवाचे दो पुत्र हुए-नरसिदैव और उदयासहदेव । ये दोनों अपने पिता गयकदेबके पीछे क्रमशः गद्दी पर बैठे। | चै० हैं ० १०७ ( वि० सं० १२१२) में मरसिंहदेवके राज्य समय उसकी माता आम्हप्पदैवाने एक शिवमन्दिर बनवाया । इसमें गि, मठ और व्याख्यानशा भी थे। वह मान्दर उसने सावंशॐ ॐ सतु सदशिवको ३ विया । तथा उसके निर्वयार्थं दो गांव भी दिये। ३० ० ९.०२ ( वि० सं० १२०८ } का एक शिलाले गयकदेमका त्रिपुरीसे मिला है । मह त्रिपुरी या तेवर, जबलपुरसे ९ हल मअम है। उसके उर्वरापिकारी नरसिंहका अपम ॐख ३० सं० १०६ ( वि० ({}3 B, A, B प्रA 31. P 24, 6, 4, 6, i 19. Ind, pl. IT P 3, (३) Eg• Il, 41.P H == १४ } ind Ant Yel; *YTIT P, 18y । र ,