पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/९७

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भारतके प्राचीन राजवंश वक्षिण कादशलके हैहय । पहले, छग के अचान्तमें ले गया है कि, कोंक १८ पुत्र थे । वनमंसे रामसे बड़ा पुत्र मुग्पतु अपने पिता कोवद्वदेवी उत्तराधिकारी हुआ और दूसरे पुत्र अलग अलग जागीरे मिलीं । उनसे एक दशन कलिहाजने दक्षिण काशज्ञ ( महोछ ) में अपना राज्य स्थापन किया । कालिंङ्गराज के यशज स्वतन्त्र राजा हुए । १–ळेङ्गराज | अह फोकलुजेवफा वनि था । रत्नपुरके एक लैखसे ज्ञात होता है। कि, इक्षिण-कोशल पर अधिकार करके तुम्माण नगरी बसने अपनी । राजधानी पनाया ।( दूसरे से स्वसे इलाकेका नाम भी नुम्माया होना पाया जाता है। इसके पुनका नाम कमलराज था । ३-कमलराज । यह एलिजका पुन और उत्तराधिकारी या । ३-रत्नराज ( रनचेच प्रथम )। यह हमलरमका पुन थी और उसके पीछे गद्दी पर बैठा । तुम्मणिर्ने इसने रत्नेशको मदिर बनवाया था, तथा अपने मामसे ररनपुर नामको नम्र भी बसाया था, वहीं ररनपुर कुछ समय बाद इसके दशकी राजधानी बना । रत्नजका विवाह कोमोमपहल राजा बजूककी पुनी नौनासे हुआ था । इस नोनद्वारे वादेन ( प्रवीश ) नै जन्म ग्रहण किया। ४-नृथ्वीदेव ( प्रथम )। थाई रत्नराजका पुत्र र बत्तराधिकारी था। इसने रत्नपुरमें एक तालाब और तुम्माणमें पृथ्वीश्वरेको मान्दर बनवाया था । पृथ्वीदेबने