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श्रीगणेषायनमः

भारत-भारती

अतीत खण्ड

मङ्गलाचरण

मानस-भवन में आर्य्यजन जिसकी उतारें आरती---
भगवान ! भारत में गूंजे हमारी भारती ।
हो भद्रभावोद्भाविनि वह भारती हे भवगते ! 
सीतापते ! सीतापते ! ! गीतामते । गीतामते !! ।। १ ।।

उपक्रमणिका

हाँ, लेखनी ! हृत्पत्र पर लिखनी तुझे है यह कथा,
दृक्कालिमा में डूब कर तैयार हो कर सर्वथा ।
स्वच्छन्दता से कर तुझे करने पड़ें प्रस्ताव जो,
जग जायँ तेरी नोंक से सोये हुए हों भाव जो ।। २ ।।  
संसार में किसका समय है एक-सा रहता सदा,
हैं निशि-दिवा-सी घूमती सर्वत्र विपद-सम्पदा ।
जो आज एक अनाथ है नरनाथ कल होता वही !
जो आज उत्सव-मग्न है कल शोक से रोता वही ! ।। ३ ।।