पृष्ठ:भारत भारती - श्रि मैथिलिशरण गुप्त.pdf/११९

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वर्तमान खण्ड थे मुग्ध वस्त्रों पर हमारे अन्य देशी सर्वथा, यूरोप के ही साहबों को हम सुनते हैं कथा । वे लोग वस्त्रों के यहाँ के थे सदैव सराहते, निज देश के पट मुफ्त में भी थे न लेना चाहते !! १०३ ।। थान का वज़न होतई था सिके ६ तोला ४9 माझे ! सुनते हैं, इस को लिपटा हुँ । एक थाने अंगूठी के सुख में से अने पर है। जहा था । (ग) एक दे औरंगज़ब की लड़की ने देके के भसलिन ( यह कपा मलमल और तेजेब से भी अग्रि और हलका होता था } का कोई वळ वरवर कर पहेन । पर जब उसके प ने उसे देखा तथ व उस पर नाराज़ हु ! बात यह थी कि उस व से उसुकै सारे अंग दिखलाई लेते थे। बाप को राज़ हो देख कीं न कहे---कई न करके तो मैंने इसे पइना है; इस पद भं? ; इसका बारीक दूर न है। तो मेरा क्या सूर ? १६) ३ की सुइ झ१ बर्शन करते हैं, महत्व माघ ३, शशुपालवध में, एक गह लिखा हैं. “छनेडवप स्पष्तरेषु यत्र स्वाईन नारीमण्ड़लेषु ।। आकाशचाई ३रम्बराणि न नामः केवल तोपिं ।” १-~-हिंदुस्तानी माल विलम्रती ॥ ६ अपेक्षा कई गुना अच्छा होत ! स्% हिन्दुस्तानी छठ की है। सात वर्ष से काम में ला रहे हैं, किन्तु, इतने दिनों के उपयोग में लाने पर भी उसमें कोई विशेश्य परिवर्तन नहीं हुआ । सर्च बात तो ग्रह है कि यूरोपियन शाल मुफ्त मिलने पर भी हम इसका व्यवहार नहीं करना चाहते । सुर टामस मन ।