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वर्तमान खण्ड


दो पैर जो पैदल चले जाता अमीर नहीं गिना,
होती न सैर प्रदशिनी की भी यहाँ वाहन विना ।
इंगलैंड का युवराज तो सीखे कुली का काम पर
काम क्या, आता नहीं लिखना यह निज नाम भी ! ।।११२।।

ही अधि सैर कववि मुझको, एक सैर शाथ हो,
नूरजहाँ की सतनत है, .खूब हो कि खराब हो ।”
कहना मुग़ल-सम्राट का यह ठीक है अब सी यहाँ,
राजा-रईस को अञ्ज की है भला परचर कहाँ ? ।।११३।।

जातायत? क्या वस्तु है, निज देश कहते हैं किसे;
क्या अर्थ आत्म-त्याग का, वे जानते हैं क्या इम ?
सुख-दुःख जो कुछ है यही है, धर्म-कर्म अलीक है;
खाओ-पियो, मौजे को, खेलो-हँसो, सो ठीक है ! ।।११४।।

क्या सीख कर लिखना उन्हें, अननो मुहरिर है कहीं,
पण्डित पदें, पढ़ कर कहीं उनको कथा कहनी नहीं ।
कीड़े-मकोड़ों की तरह हैं कांटते अक्षर उन्हें,
हैं प्रेम उपवर के सदृश अपनी अविद्या पर उन्हें ! ।।११५।।
 
हैं शत्र यद्यपि सिद्ध वै श्रीमान विद्या के सदा,
पर कौन गुण उनमें नहीं जिनके यहाँ है सम्पदइ ?
हा सम्पदे ! सत्ता तुम्हारी है चराचरामिनी,
संसार में सारे इ.ए. की इस तुम्ही हो रवामिनी ! ।।११६।।