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भारत-भारती




ऐसा नहीं कि रईस अपने हैं नहीं कुछ जानते,
वे कुछ न जाने किन्तु ये दो तत्व हैं पहचानते-
त्रुटि कौन-सी उनकी सभा में है सजावट को पड़ी, है ‘जानकोवाई’ कि ‘गहरजान' गाने में बड़ी ! ।।११४॥

दुविध प्रजा का द्रव्य हर कर फेंकते हैं व्यर्थं थे,
सत्कार्य करने के लिए हैं साया असमर्थ वे !
चाहे अपयश में उड़े लाखों-करोड़ों भी अभो,
पर देश-हित में वे न दें । एक कौड़ी भी कभी ११ ।।११५।।

दुर्भिक्ष आदिक दुःख से यादै देश जाता है भर,
तो हैं ग्रसन्न कि मि उनका अन्न-जन से है भर ।
दुर्भाग्य से यदि देश-भाई आपदा में फंसे रहे-
तो नाच-मुजर' में विराजे र सुख से हैं स रहे ।।११६।।

उनकी सभा इन्दर सभा' है इन्द्र उनको लेख लो,
वह पूर्ण परियों का अखाड़ा भाग्य हो तो देख लो !
विख्यात बोतल की दुवा क्या है अमृत से कम कभी !
लेखक अम कैसे लिखे उस स्वर्ग का वर्णन सभी ! ।।११७।।

भने हाथ में उनका नहीं, वे इन्द्रियों के इस हैं,
कल-कण्ठियाँ गुलरिती उनके अतुल आवास हैं ।
चे नेत्र-बाण से बिंध हैं, वाल-ब्यालों से उर्स,
के से बचने के, विषय के बन्धनों से हैं कसें ।।११८।।