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वर्तमान खण्ड


हाँ, नाच, भोग-विलास-हित उनका भरा भण्डार है,
धिकधिक पुकार मृदङ्ग भी देता उन्हें धिक्कार है!
वे जागते हैं रात भर, दिन भर पड़े सोवें न क्यों?
है काम से ही काम उनको, दूसरे रोवें न क्यों!॥११९॥

उस भाँड, भेंडवे, ममखरे उनकी सपा के रत्न ,
करते रिझाने के उन्हें अच्छे बुरे भय इत्न हैं।
धारा वचन का कौन जो उनके सुर में न बह उठे :
है कौन, उनकी बात पर जो ‘हाँ हुजूर न कह उठे? ।।१२०।।

इशी नरेश को जरा भी ध्यान होता देशक,
हासे न विषयवाद यदि वे याग कर उद्देश का ।
ला दूसरों ही इश्य होता अर्ज भरलव ऋः,
नि देख! पता हमें क्यों आज यह पक का ?।।१२१।।

है अन्य धनिये की दशा भी टाक देना है।
यह दे इशा जो देश की अवकाश है उनको कहाँ ?
र भितुव्यय तो बों के व्यष्टी उनके नाम हैं,
हैं इत्र मिल कसा जहाँ तक तेल का क्या काम है ! ।।१२२।।
रईसों के सपूत
जब याद आती है बड़ों के उन सपूतों की कथा, उनके सरवर, सङ्गी, चिदृश्क और दूत की कथा ।
तय निकल पड़ते हैं हृदब से बदन ऐले दुख भरे--
होवे न ऐसे पुत्र चाहे हों लक्ष्य हे हरे ! ।।१२३।।