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वर्तमान खण्ड




वमान खण्ड ऐसी असुविधा में कहो वे दोन कैसे पढ़ सके ।
इस ओर में लाखों अकिञ्चन किस तरह से बढ़ सके ?
अट रद्द कर काटते हैं मास के दिन तीस वे,
पाझे कहाँ से पुस्तकें, वे कहाँ से फीस वे ? ॥१३९॥

वह आधुनिक शिक्षा किस विध प्राप्त भी कुछ कर सको-
तो लाभ क्या, बस क्लर्क बन कर पेट अनि भर सकों !
लिखते रह जो सिर झुका लुन अफसरों की गालियाँ !
ता दे की रात को दो रोटियाँ घरबालियों ! ।।१४०।।

अब दौकरी ही के लिए विद्यः पढ़ी जाती यहाँ,
बी.ए.न हां हम तु? भला डिप्टी रखो कहाँ ?
किस वर्ग का सपान हैं तू हायरी, डिप्टीगरी !
सीमा समुन्नति का हमार, चित्त में तु ही भर !! ।।१४१।।

शिक्षार्थ क्षात्र विदेश भी जाते अवश्य कभी कभी,
पर वक्ता ही झाड़ते हैं लौट कर प्राय: सभः !
है कान कितना का यह पहलू यहाँ मिस्टर ने,
इंग्लैंड जाकर फिर यह वन्चर बरिन्दर भने ।।१४२।।

के वीर हाय ! स्वदेश कर रहे यही उपकार हैं-
दो भाइयों के युद्ध में होते वही अर हैं !
उनके भरोसे पर यहाँ अभियोग चलते हैं बड़े,
हार’ कि जी ने अप, उनके किन्तु पौयारह पड़े !।।१४३।।