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वर्तमान खण्ड




वर्तमान खण्ड होती नहीं उससे हमें निज धर्म में अनुरक्ति है,
होने न देता पूर्वजों पर वह हमारी भक्ति है ।
उसमें विदेशी मान का ही मोह-पूर्ण मह्त्य है,
फळ अन्त में उसका वहीं दासःद है, दासत्व है ! ।।१४९।।

हम मू और असभ्य थे, उससे विदित होता वही,
इस मर्म को कि भी नु क थे, छिपाती है वही ।
क्री थाट' ही वह वेद के बदले रातो है हमें,
देखो, हटा कर असलियत से वह बटातो है हमें ।।१५०।।

क्या लाभ है उन हिस्ट्रियों कई कण्ठ करने से भला---
रदते हुए जिनको हमारा चैठ जाता है गला ?
हा ! स्वेद बन कर व्यर्थ हे बहुत सारा रक्त है,
सन्-संवत के फेर में बरवाद होता वक्त, है ! ।।१५१।।
 
दुर्भाग्य से अब एक तो वह ब्रह्मचर्याश्रम नहीं,
तिस पर परिश्रम व्य यह पड़त? हमें कुछ कम नहीं ?
फिर शीघ्र ही चश्मा हमारे चश्नु चाहें श्यों नहीं ?
हम रुग्दा हाँकेर भर दुख से कराई क्यों नहीं ? ।।१५२।।

हैं व्यर्थ वह शिक्षा कि जिनसे देश की उन्नति न हो,
जापान्ड के विद्यार्थियों की सूक्ति है कैसा ही है
साहब ! हमें यूरोपियन हिस्टुं न अब दिखलाइए,
बेलन की रचना हमें करके कृपा सिखलाइए' ।।१५३।।


5 Fee-ought विचारों की निरंकुशता, यदु। तर कहना ।