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वर्तमान खण्ड



हिन्दू सनातन धर्म के ऐसे पवित्र विधान हैं-
संसार में सबके लिए जो मान्य एक समान हैं।
धृति, शान्ति, शौच, दया, क्षमा, शम, दम, अहिंसा, सत्यता;
पर हाय! इनमें से किसी का आज हममें है पता? ॥१८८॥

विख्यात हिन्दू धर्म्म ही सच्चा सनातन धर्म्म है,
वह धर्म्म ही धारण क्रिया का नित्य कर्ता-कर्म्म है।
परमार्थ की-संसार की भी-सिद्धि का वह धाम है,
पर वाद और विवाद में ही आज उसका नाम है! ॥१८९॥

तीर्थ और तीर्थ-पण्डे

आरम्भ से ही जो हमारे मुख्य धर्म्म-क्षेत्र हैं-
अब देख कर उनकी दशा आँसू बहाते नेत्र हैं।
हा! गूढ़ तत्त्वों का पता ऋषि-मुनि लगाते थे जहाँ-
सबसे अधिक अविचार का विस्तार है सम्प्रति वहाँ‍‍! ॥१९०॥

वे तीर्थ जो प्रभु की प्रभा से पूर्ण हो पूजित हुए-
राजर्षि-युत ब्रह्मर्षियों के कण्ठ से कूजित हुए,
अब तीर्थ-गुरु ही हैं अधिक उनको कलङ्कित कर रहे,
हा! स्वर्ग के सु-स्थान में हम नरक अङ्कित कर रहे! ॥१९१॥

वे तीर्थ-पण्डे, हैं जिन्होंने स्वर्ग का ठेका लिया;
है निन्द्य कर्म्म न एक ऐसा हो न जो उनका किया!
वे हैं अविद्या के पुरोहित, अविधि के आचार्य्य हैं,
लड़ना-झगड़ना और अड़ना मुख्य उनके कार्य्य हैं॥१९२॥