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वर्तमान खण्ड




हा ? वेद के अधिंकारियों में आज ऐसा मूढ़त.
है शेष उनके गुप्त’ पद में किन गुणों की गूढता ? ।।२१७ ।।

कौशल्य उनका अब यहाँ बस तेल में रह गया,
उद्यम तथा साहस दिवाला वेदने में रह गया !
कर लो हैं होड़ उनके वचन कच्चे सुत से,
करते दिवाली पर प रय क्र वे छत से ! ।। २१८ ।।

चारित्र्य या व्यवसाय को हेक्षा शऊर उन्हें कहीं---
ने देश का न थेकभी जानु त्रिदेश के नहीं ।
हैं अर्थ सट्टा-फादका उनके निकट व्यापार क्री,
कुछ पार हैं देखें भला के महा अविचार का ? ।। २१९।।

बल हाय पसा ! हाय पंसर ११ कर रहे हैं वे सभी,
पर गुण विना स भद्रा क्या साप्त होता है का ?
सबसे गये श्रीदें नहीं क्या आज ॐ हैं ,
वे देख सुन कर भी सभी कुछ क्या कभी कुछ लाख ? ।।२२०।।

बस अब विदेशों सँगई कर बेचते हैं माल है,
मान विदेश बाणिजे के हैं यह दलाल वे ।।
बेतन सा कुछ खास पर वे देश कधन खा रहें,
निद्रव्य कारीगर यहाँ के हैं उन्हीं के रे। हे ।। २२१ ।।

उनका जिल्व विनष्ट है, हैं किन्तु उनके ग्वेद क्या ?
संस्कार-हीन जघन्यजेई में और उनमें भेद क्या ?