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वर्तमान खण्ड




होगी यहाँ तक कर्कश क्या लेखना ! तू रिवा-
गृहदेवियों के जो हमारी लिख सझे तू दुःशा ?
किस भाँति देखो यहाँ, इश्क ! ? को ईच ,
यह दृश्य है क्या देखने का, दृष्टि अपनी खींच लो ।।२२७ ।।

अनुकूल अद्याशक्ति को सुखदायिनी जो स्फूर्ति है,
सेद्धम् की जो मूनि और पवित्रता की पूचि है !
नर-जाति की जननी तथा शुभ शान्ति की स्लोस्वती,
हा देव ! जाई-जाति के केसां यहाँ हैं दुर्गती ! ।। १२२८ ।।

होती रही मग अनेके और मैत्रेयी जहाँ, अत्र हैं
'अविद्या-भूति- कुलरियाँ होती वहाँ ?
क्या दोष उलझा किन्तु जो उनमें गुणों को हैं कम ?
हो ! क्या करे ३ जब कि उनको मूर्ख रखते हैं हम ?।।२२९ ।।

बी. ए. गृहस्वामो विदित ; किन्तु क्या हैं स्वामिन् ?
कैसे कहें, हो । है अशिक्षारूपियावे भामिन !
अत्युकि क्या, दिन-रात का-सा भेद जो इसको कहे;
दाम्पत्व-भाव भइ हुमा काम में कस रहे ? ॥२३०।।

बहू कुशलत-सूचक के दाएँ जनिती थीं जो कर्म:,
अब कलह-कुशल हैं हमारी गृहणियाँ प्रायः सभी ।
हा ! बन रहे हैं गृह मरे विग्रहस्थल-से यहाँ,
दो नदियाँ भी हैं जहाँ शबाना बरसेंगे हाँ ! ।। २३१।।