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अतीत खण्ड

यह पुण्य-भूमि प्रसिद्ध है, इसके निवासी 'आर्य्य' हैं;
विद्या, कला-कौशल्य सबके जो प्रथम आचार्य्य[१] हैं।
सन्तान उनकी आज यद्यपि हम अधोगति में पड़े;
पर चिन्ह उनकी उच्चता के आज भी कुछ हैं खड़े॥१७॥

हमारा उद्भव

शुभ शान्ति-मय शोभा जहाँ भव-बन्धनों को खोलती,
हिल मिल मृगों से खेल करती सिंहिनी थी डोलती।
स्वर्गीय भावों से भरे ऋषि होम करते थे जहाँ,
उन ऋषि गणों से ही हमारा था हुआ उद्भव यहाँ॥१८॥

हमारे पूर्वज

उन पूर्वजों की कीर्ति का वर्णन अतीव अपार है,
गाते नहीं उनके हमीं गुण, गा रहा संसार है।
वे धर्म्म पर करते निछावर तृण-समान शरीर थे,
उनसे वही गम्मीर थे, वर वीर थे, ध्रुव धीर थे॥१९॥

उनके अलौकिक दर्शनों से दूर होता पाप था,
अति पुण्य मिलता था तथा मिटता हृदय का ताप था।
उपदेश उनके शान्तिकारक थे निवारक शोक के,
सब लोक उनका भक्त था, वे थे हितैषी लोक के॥२०॥

  1. एतद्देशप्रसूतस्य सकाशादप्रजन्मनः।
    स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन्पृथिव्यां सर्वमानवः॥

    मनुस्मृति।