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वर्तमान खण्ड


अधिकार


इम योग भी पाकर उसे उपयोग में लाते नहीं,
सामध्ये पाकर भी किसी के लाभ पहुँचाते नहीं है ।
जैसे बुनै हम दूसरों को हानि ही करते सदा,
अधिकार पाकर और भी अघ के घड़े भरते सदा ! ।। २६३ ।।

न्यायालयों में मा निरन्तर चूंस खाते हैं हम,
रकक्ष पुलिस के भी यहाँ भक्षक बनाते हैं हम ।
कर्तृत्व का फल हस प्रजा पर बल दिखाना जानते,
हस दीन-दुखियों के रुदन को शान-सम हैं मानते ! ।।२६४।।

अभियोग


हा १ हिंस्र पशुओं के सदृश इसमें भरी हैं ऋरता,
करके कलह अब हम इसी में समझते हैं शरता ।
खोजो हमें यदि जी कि हम घर में न सात ही पड़े-
होंगे घको के अड़े अथवा अदालत में खड़े ! ।। २६५ ।।

न्यायालय में नित्य ही लस्व खावे सैकड़ों, प्रति बार,
पब पर पर, वह हैं खर्च होते मैक ।
फिर में नहीं हम चेतते हैं दौड़ कर जाते ही,
लघु बात भी इस पाँच मिल कर आप निपटाते नहीं।।२६६।।

विपय


देखो जहाँ विपरीत पथ है। हाय ! हमने है लिया,
श्रीराम के रहते हुए आदर्श रखएः के किया !