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वर्तमान खण्ड


गुणों की स्थिति


बस अन्य की ही भवन में रह गया उद्योग है,
आजीविका है नौको में, इन्द्रियों में भोrt है ।
परतन्त्रता में अभयता, अय राजदण्ड-विधान में,
व्यवसाय हैं कैरिस्टरी चा डाक्टो दूकान में ! ।।२९२।।

है चाटुकारी में चतुरता, कुशलता छल-छय में,
पाण्डित्य मर-निन्दा-विषय में, शरता है सच में !
बस मन में बम्मरता है, है बड़पन वेश में,
जो बात और कहीं नहीं वह हैं हमारे देश में ! ।।२९३।।

कादीगरी है शेप अब साक्षी बनाने में यहाँ,
हैं सत्य था विन्यास केवल कसम खाने में यहाँ ।
है धैर्न तर्क-वितर्क , अभियोग में ही तत्व हैं !
अवशिष्ट दारोगों में सब और महत्व है ! ।।२९४॥

तिज अर्थ-सदन में हमारी रह गई अब भक्ति है,
है कम्झ बस दासत्व में, अब स्वर्ग में ही शक्ति है ।
गौरव जताने में यहाँ उत्साह कर लात पता,
बस बाद में हैं बारिमता, पर-अनुकरण में सभ्यतः ॥२९५।।

निज धर्म के बलिदान ही में आज यज्ञ-विधान है,
है अनि नास्तिक भाव में, अब नींद में ही ध्यान दें।
है या पाशव-वृत्ति में हो, हाय ! कैसी व्याधि है,
वश्व मृत्यु में ही रह गई अब भारतीय समाधि है ! ।।२९६॥