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भविष्यत् खण्ड




निज धर्म का पालन करो, चारों फलों की प्राप्ति हो,
दुख-दाह, प्राधि-व्याधि सबकी एक साथ समाप्त हो ।
ऊपर कि नीचे एक सी सुर है नहीं ऐसा कहीं--
सकर्म में रत देख तुमको जो सहायक हो नहीं ।।५१।।

देखो, तुम्हें पूर्वज तुम्हारे देखते हैं स्वर्ग से,
करते रहे जो लोक का हित उकच अल्मोत्सर्ग से ।।
हैं दुख उन्हें अब स्वर में भी पतित देख तुम्हें अरे !
सन्तान हो क्या तुम उन्हीं की राह ! राम ! हरे हरे ! ! ! ।।५५२॥

अब तो विदा कर दुर्गुण को सद्गुणों को स्थान ,
खोयह समय यॊ ही बहुत अब तो उसे सम्मान दो ।
चिरकाल लिमिट्टित रहे आलोक का भी स्वाद लो,
ही योग्य सन्तति, पूर्वजों में दिव्य आशीर्वाद लो ।।५३।।

  • को दिखा दे यह कि अब भी हम सजीव,

सुशक्त हैं. रखते अभी तक नाड़ियों में पूजां का रक्त हैं ।
ऐसा नहीं कि मनुष्यरूपी और कई जन्तु हैं,
अब भी हमारे मस्तकों में ज्ञान के कुछ तन्तु हैं ।।५४।।

अब भी संभल जाई कहीं हम, सुलभ हैं सब सजि भी
बनना, बिगत है हमारे हाथ अल अज भी ।
थूनान मिश्रादिक मिटे हैं किन्तु हम अब भी बने,
यद्यपि हमारे भेदने को ठाउ कितने ही ठने ॥५५॥

हे आ-सन्तानों ! उठो, अवर निकल जावे नहीं,
देखो, बड़ों की अति जग में बिगड़ने पावे नहीं ।