पृष्ठ:भारत भारती - श्रि मैथिलिशरण गुप्त.pdf/१८२

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१७२ भारत-भारती एथल कैसे जीतता होता न यदि सेलिन। वहाँ १ ।। ९६ ।। संसार में कविता अनेके क्रान्तियाँ है कर चुकी, मुरझे मने में बेग की विद्युत्प्रभाएँ भर चुकी । है अन्ध-सप अन्तर्जगत कवि-रूप सविता के विना, सद्भाव जीवित रह नहीं सकते सु-कविता के विना ।। ९७ } सूत जाति के कवि ही जिलाते रस-सुधा के योग से, पर मारते हो तुम हमें उलटे विषय के रोग से ! कवियो । उठो, अब तो अहो ! कवि-कस्म की रक्षा करो, बस नोच भावों का हरण कर उच्च भावों को भरो ।।९८) दयुर्व हे नवयुवाओ ! देश भर की दृष्टि तुम पर ही लगी, है मनुज जीवन की तुम्हीं में ज्योति सव से जगमगी। दागे न तुम ते कैन देगा ये देशोद्धार में है। देखो कहाँ क्या हो रहा है आज कल संसार में ।।९९।। -पुराने ज़माने में प्रीस के एथेन्स नगर वाले भेगार वालों से गैरव रखते थे। एक टपू के लिए उनमें कई दुक लड़ाइयाँ हुईं । पर हर ऊ एथेन्स वाले ही की हार हुई । इस पर सोलन नाम के विद्वान् को क्ष दु:ख हुआ। उसने एक कविता लिखी। उसे उसने एक ऊँची जगह द काय एथेन्सवालों को सुनाया । उस कविता का लोगों के दिलों पर इ असर हुअ किं फौरन मेगारर बालों पर फिर चढ़ाई करदी गई और किं १५ के लिए यह बखेड़ा हुआ था उसे एथेन्स वालों ने लेकर कले %t ! इस चढ़ाई में धोलन सेनापति हीं बनाया गया था ।