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भारत-भारती

है ब्रिटिश-शासन की कृपा ही यह कि हम कुछ जग गये,
स्वाधीन हैं हम धम्र्भ में, सब भये हमारे भर गये ।
निज रूप को फिर हम सभी कुछ कुछ ली हैं जानने--
निज देश भारतवर्ष को फिर हम लगे हैं मानने ।।११६।।

आशा



बीही नहीं यद्यपि अभी तक है निराशा को निशा-
है किन्तु आशा भो कि होगी दीप्त फिर प्राची दिशा ।।
महिमा तुम्हारी हो जगत में धन्य अशे ! धन्य है,
देखा नहीं कोई कहीं अवलम्ब तुम-सा अन्य है ।।११७॥

आशे, तुम्हारे हो भरोसे जी रहे हैं हम सभी, ।
सब कुछ गया पर हाय रे ! तुमको न छोड़ेंगे कमी ।।
आशे, तुम्हारे ही सहारे टिक रही है यह सही,
धोखा न दीजो अन्त में, बिनती हमारी है यही ॥११८।।

यद्यपि सफलता की अभी तक सरसता चक्खी नहीं,..
हम किन्तु जान रहे कि वह श्रम के विना रक्खी नहीं ।
यद्यपि भयङ्कर भाव से छाई हुई है दीनता-
कुछ कुछ समझने हम लगे हैं किन्तु अपनी हीनता ॥११९॥

, यद्यपि अभी तक स्वार्थ का साम्राज्य हम पर है बना–
पर दीखते हैं साहसी सी और कुछ उन्नतमनः ।।
बन कर स्वयं सेवक सभी के जो उचित हित कर रहे,
होकर निछावर देश पर जो जाति पर हैं मर रहे ॥१२०।।

फैला निरुद्यम सब कहीं, हैं किन्तु ऐसे भी अभी--
जिनका उपार्जन भोगते हैं देशवासी जन समी ।