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भविष्यत् खण्ड

प्राचीन और नवोन अपनी सब दशा झालाच्य है,
अब भी हमारी अस्ति है यद्यपि अवस्था शोच्य है ।
कर्तव्य करना चाहिए, हेपी ने क्या प्रभु को दया,
सुख-दुःख कुछ हो, एक-सा ही सच समय किसका गया?।।१३२।।

विश्वास


सौ सौं निराशाएँ रहें, विश्वास यह दृढ़ मूल है---
इस आत्म-लीला-भूमि को वृह विभु न सकता भूल है ।
अनुकूल अवसर पर दयामय फिर दया दिखलायेंगे,
'वे दिन यहाँ फिर अअयगे, फिर आयेंगे, फिर आयेंगे ।।१३३।।

विश्राम


रा लेखनी ! बस बहुत है, अब और बढ़ना व्यर्थ है,
है यह अनन्त कथा तथा तू साथी असमर्थ है ?
करती हुई शुभकामना निज वेग सविनय थाम ले,
कहती हुई “जय जानकीजीवन” तृनिक विश्राम ले ।।१३४।।

शुभकमना


बकी नसों में पूर्वजों का पुण्य रक्तप्रवाह हो,
गुण, शील, साहस, बल तथा सबमें भरा उत्साह हो ।
सबके हृदय में सदा समवेदना का दाह हो,
हमके तुम्हारी चाह हो, तुमको हमारी चाह हो ॥१३५॥
विद्या, कला, कौशल्य में सबका अटल अनुराग हो,
उद्योग का उन्माद हो, आलस्य-अध का त्याग हो ।
सुख और दुख में एक-सा सब भाइयों का भाग हो,
अन्तःकरण में गं जला राष्ट्रीयता का राग हो ।। १३६ ।।