पृष्ठ:भारत भारती - श्रि मैथिलिशरण गुप्त.pdf/१९५

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[ ३ । बराङ्गना यह भी बुसुदनादन में वीर नामक अँगला काय का हिन्दी- एनुवाद है। इस काव्य में भी मदद-वध” महाकाव्य ॐ अनेक दुदु हैं । सुन्दर रेशम जिल्द । मूल्य १) | विरहि ब्रजाइन्। यर के महाकथि सुसूदनदत्त के “ भन्।” नमक काव्य का सुन्दर पद्यानुवाद । बरही धिक्का ॐ मनोभावे ऊ ऋसमें बड़ी है। यही वजह हैं ! चतुर्थ संस्करी ३ अनुय ।। इसमें मुजी की छिल्लो दुई भिन्न भिन्न विषयों पर बहुत भाव पूर्ण और ओजोमय राष्ट्रीय कविताएँ हैं। मूल्य {{}} या काव्य दमय के एक अंश को लेकर लिखा दी है । कवि ने इसमें जिस सैद की सृस्टि की है, वह अहुत ही मनमोहक ३ मैथिलीशरण गुप्त लिखित रूपक काब्य । इसका फ्थान्छ बौद्ध जातक से लिया गया हैं। भवान् बुद्ध ने अपने पूर्व जन्म में कोई शाक्य सङ्गठन और नेतृत्व क्रिशर था, इसमें उसका विश्-हर्णन है। अफ अन्य हिन्दी में बिलकुल नये कॅर कई हैं, अवश्य पढ़िये । मू० ।।) भारत-मरतो । इसमें भारत के अतीत गौरव और वर्तमान पतन का बड़ा ही मर्मस्प बौन है । इसका अध्ययन आपको देशमरिक ॐ पकिन्न पथ की ओर अग्रसर करने में सहायक हो । हिन्दू-विश्व-विधालय में ग्रह पुस्तक बी० ए० के कोर्स में है। मूल्य १) और सुन्दर निंददार १३॥